वर्तमान में बच्चों के भारी होते बस्तों से सभी त्रस्त हैं लेकिन प्रतिस्पर्धा और सबसे आगे रहने की चाह में खुलकर कोई भी इसका विरोध नही करता है और न ही खुद से कोई पहल ही करता है क्योंकि बदले समय के लिहाज से अब यह आवश्यक लगता है।
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